My dear friend Lalit Joshi has shared this tribute to the past year by Gulzar. Thank you Lalit....Regards:
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Tribute to the passing year by
Gulzar:
आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है.
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है.
रफ़्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छूट गए.
रूठों को मनाना बाकी है, रोतों को हसाना बाकी है.
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं, कुछ काम भी अभी ज़रूरी हैं.
ख्वाहिशें जो घुट गयीं इस दिल में, उनको दफ़नाना बाकी है.
कुछ रिश्ते बन कर टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए.
उन टूटे छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है.
तू आगे चल मैं आता हूँ, क्या छोड़ तुझे भी पाउँगा?
इन साँसों पर हक़ है जिनका, उनको समझाना बाकी है.
आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है....
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