Friday, June 3, 2016

टिटिलागढ़ वासीओ, कृपया मुझे क्षमां कर देना ! - के. जे. एस. चतरथ

Indicative map of Odisha showing Titilagarh


आज कल बहुत गर्मी पड़ रही है.

वह पुराने दिन भी याद आते हैं. अप्रैल १९७१ में मेरी पहली पोस्टिंग उड़ीसा के टिटिलागढ़ में इस. डी. ओ. के पद पर हुई.  वह १०,०००  के करीब आबादी वाला छोटा सा क़स्बा था. सरकारी बंगला तो नहीं था बस तीन कमरों का  टीन की छत वाला क्वाटर  बीच बाज़ार में था.  शौचालय क्वाटर से कोई ५० फुट की दूर पे था. पीने के पानी के लिये एक कुआँ था. बिजली तो थी पर आती जाती रहती थी.

 टिटिलागढ़ के चारों टर्फ पत्थर के टीले हैं और क़स्बा एक कटोरी की तरह स्थान में है. गर्मी वहां बहुत पड़ती है. असुविधा यह है की सूर्य ढलने पर भी गर्मी कुछ खास कम  नहीं होती. पत्थर दिन में ली हुई गर्मी छोड़ते हें.

उस साल गर्मी कुछ ज़्यादा ही पड़ी. रेडियो में सुना की टिटिलागढ़ देश का सुब से गर्म स्थान था. एक दिन किसी ने बताया की पारा ५०  डिग्री पार कर गया है. कोई थर्मामीटर नहीं था मेरी पास इस बात को चेक करने के लिए. लेकिन गर्मी इतनी पड़ी की कस्बे के सब कुएं सूख गए. केवल दो कुँए नहीं सूखे - एक मेरे घर में और एक साथवाले तहसीलदार साहिब के घर में. सारा शहर  कुछ दिन इन्ही दो कुओं पर निर्भर था.

अब ४५ साल बाद मुझे दो बातें चुभतीं हैं. एक तो यह की हमें उन दिनों मसूरी अकैडमी यां उड़ीसा में ट्रेनिंग के दौरान कुछ ऐसी  चर्चा  कभी नहीं की गयी थी की ऐसी मूल मानवीय परिस्थितियों से कैसे निबटना चाहिये। दूसरा, और बड़ा दुख यह है की मैँ  वहां एक साल रहा और फिर ट्रांसफर हो गया, लेकिन मैं टिटिलागढ़ की पानी की इस कमी की समस्या के दूरगामी निवारण के लिए कुछ ठोस नहीं कर पाया.

 टिटिलागढ़ वासीओ, कृपया मुझे क्षमां कर देना !

2 comments:

  1. Very well written. We have to undertake a deep introspection as to why citizens have to walk miles to get their quota of drinking water even today, why afforestation could not be done to reduce heat during summer in Titlagarh after 70 years of Independence! What ails the system?

    ReplyDelete
  2. Yes, Dr. Sarangi...I agree...introspection should point out towards some solutions...

    ReplyDelete